आपने कहावत तो सुनी ही होगी, “जहाँ चाह है वहां राह है”। ये ऐसे ही नहीं कहते, कुछ लोग जिनमें कुछ कर गुज़रने की चाहत होती है, वो इसको पूरा करके दिखाते हैं। चाहे परिस्थितियां उनके अनुकूल हो या उनके विपरीत वो कुछ ऐसा कर जाते हैं, कि सिर्फ उनके शहर को नहीं बल्कि पुरे देश को उन पर प्राउड होता है। आज हम चंडीगढ़ के “स्पेशल एथलीट” शमशेर सिंह की बात कर रहे हैं, जिसने आस्ट्रिया में उस गेम में पदक दिलाया, जिसका शायद बहुत से लोगों को नाम पता भी नहीं होगा और वो गेम है “स्नो शोइंग”। अपने पहले ही इंटरनेशनल इवेंट में शमशेर ने डबल पदक जीते। 100 मीटर में गोल्ड और 50 मीटर में ब्रोंज।
कहते है शमशेर के पापा नहीं मिली बर्फ, तो की रेत पर की प्रैक्टिस :
गुरमीत कहते हैं, की उनके बेटे को प्रैक्टिस करने के लिए बर्फ नहीं मिलती थी। इसलिए वो कच्ची सड़क पर अभ्यास करता था। उसे यहाँ तक पहुँचने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। थोड़े अभ्यास के बाद उसने सतलुज से निकलने वाली रेत पर अभ्यास किया। उसके बाद वो नेशनल इवेंट के लिए श्री नगर गए और वहां गोल्ड मेडल जीता। यही से उनकी ओल्यम्पिकस में एंट्री का रास्ता बना और उन्होंने अपनी सिलेक्शन होने के बाद, हमे गोल्ड मेडल जिताया।
मेडल तो मेडल है फिर फर्क क्यों :
मेडल तो मेडल हैं, चाहे वो नार्मल एथलीट दिलाये या कोई “स्पेशल एथलीट”। फिर स्पेशल एथलीट्स के साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है। एक तरफ कहते है, की सबको एक जैसा मौका मिलना चाहिए और दूसरी तरफ इंटरनेशनल लेवल पर पदक दिलाने वाले स्पेशल एथलीट्स का न अच्छा वेलकम किया जाता है न उनको नॉर्मल एथलीट्स के मुकाबले इनाम मिलते हैं। स्पेशल चाइल्ड्स को मोटीवेट कर के आगे लाने के लिए कुछ कदम सरकार को उठाने चाहिए, ताकि उनको आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिले।
देश को गर्वान्वित करने वाले उन सब स्पेशल एथलीट्स को बहुत बधाई और सिर्फ एक आशा करते हैं की उन सब स्पेशल एथलीट्स को जो देश के लिए इतनी मेहनत करते हैं, को बराबर के हक़ दिया जायेगा।